Saturday, November 10, 2018

अधूरे ख़्वाब

कुछ अधपके से ख़्वाब 

रखे थे सिराहने पे.

उम्मीद है सुबह की धूप 

काम आएगी उसे पकाने 

में.

शिल्पा रोंघे 

No comments:

Post a Comment

मेघा

देख रहे हैं राह, बचे-खुचे कुछ जंगल। अब तो निमंत्रण स्वीकार कर। सूख रही हैं नदियाँ और ताल, फिर से बह कर कहीं दूर निकल चल। मेघा, बरस  फिर से, ...