चंचल,
कल -कल, छल छल
निशब्द
सा बहता
मेरा मन
तुम बंधन
बन जाना
वेग को मेरे
काबू कर लेना
मैं नदी बन
जाउंगी तुम बांध
बन जाना.
शिल्पा रोंघे
I like to write Hindi poetry in comprehensive language, which try to depict different situation and state of mind of human beings. All Rights reserved ©Shilpa Ronghe
देख रहे हैं राह, बचे-खुचे कुछ जंगल। अब तो निमंत्रण स्वीकार कर। सूख रही हैं नदियाँ और ताल, फिर से बह कर कहीं दूर निकल चल। मेघा, बरस फिर से, ...
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