Saturday, November 24, 2018

पेन्सिल की कहानी

पेन्सिल की
कहानी

कई किरदार गढ़े
अब तक कविता
और कहानी में,
कल्पना में रंग भरते भरते.
कोरे कागज पर लफ़्ज
बनाते बनाते हर रोज
कद में कम होती रहती
हूं.
हमेशा नए किरदार
गढ़ती हूं कहानी
में, सोचती हूं
शब्द तो
अमर हो जाते है.
मेरा वजूद कहां
है?
शिल्पा रोंघे

No comments:

Post a Comment

मेघा

देख रहे हैं राह, बचे-खुचे कुछ जंगल। अब तो निमंत्रण स्वीकार कर। सूख रही हैं नदियाँ और ताल, फिर से बह कर कहीं दूर निकल चल। मेघा, बरस  फिर से, ...