क्या मैं तुम्हारे मन के आंगन
का फूल बन सकती हूं ?
शायद कुछ कांटे भी मेरे
साथ हो चलेंगे.
क्या मैं तुम्हारे मन में बसी
प्रतिमा बन सकती हूं?
शायद कुछ छोटे कंकड
पत्थर भी साथ हो चलेंगे.
क्या मैं तुम्हारे हृदय में
प्रेम धारा बनकर बह
सकती हूं ?
शायद कुछ बवंडर
भी साथ आएंगे.
कभी खट्टे तो कभी मीठे
जीवन के अनुभव तुम्हें
आएंगे.
क्या ये गहरे कभी हल्के
कभी सुनहरे, तो कभी
मटमैले से जीवन के रंग
तुम्हें सुहाएंगे ?
कभी फ़ुरसत मिले जीवन
की आपाधापी से तो
मेरे मन के इन प्रश्नों
को हल कर देना.
ना रखना मन पर भार
कोई, अपना समझकर
सब कुछ साफ साफ कह
जाना .
शिल्पा रोंघे
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