ना जाने कब बंद
होगा गलतफ़हमियों
का सिलसिला.
चुप्पी की ये दीवार
कभी तो टूटे,
हमें मानते है वो
अपना या नहीं
इस भ्रम से पीछा
तो छूटे.
शिल्पा रोंघे
I like to write Hindi poetry in comprehensive language, which try to depict different situation and state of mind of human beings. All Rights reserved ©Shilpa Ronghe
देख रहे हैं राह, बचे-खुचे कुछ जंगल। अब तो निमंत्रण स्वीकार कर। सूख रही हैं नदियाँ और ताल, फिर से बह कर कहीं दूर निकल चल। मेघा, बरस फिर से, ...
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