Wednesday, November 28, 2018

मोहब्बत का खेल

खेल बन चुकी है अब तो
मोहब्बत.

उसकी खुशी के लिए मैंने
हारना ही मुनासिब समझा.

नहीं जरूरत उसे मेरी
तो दूर जाना ही ठीक
समझा.

क्या करूं में ऐसी जीत
का, जहां मेरा होना या ना
होना ही मायने नहीं रखता.

समझा था जिस इश्क को
कोई मंदिर वो
असल में दिल का बाज़ार
निकला.

शिल्पा रोंघे




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