लिख लिए कुछ पत्र ईश्वर
के नाम पर.
पता मालूम नहीं था, तो बहा
दिया किसी नदिया में.
सुना और पढ़ा है कण -कण
में रहता है वो.
करके विश्वास लिख दी
हृदय की बात.
कोलाहल भी नहीं हुआ शब्दों का और मन भी हल्का हो गया.
शिल्पा रोंघे
I like to write Hindi poetry in comprehensive language, which try to depict different situation and state of mind of human beings. All Rights reserved ©Shilpa Ronghe
देख रहे हैं राह, बचे-खुचे कुछ जंगल। अब तो निमंत्रण स्वीकार कर। सूख रही हैं नदियाँ और ताल, फिर से बह कर कहीं दूर निकल चल। मेघा, बरस फिर से, ...
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