Saturday, November 17, 2018

नौ रसों की गाथा

बिना मिठास के फल ही क्या ?

बिना रस के काव्य की 

रचना ही कैसे हो भला.

चलो रस भरते है जीवन 

में, काव्य रचते है रंग 

बिरंगे से हम.

प्रेम रस के रूप अनेक

श्रृंगार, वात्सल्य, भक्ति का 

का होता संचार.

कभी मिलन है तो कभी 

विरह है, श्रृंगार रस.

कभी कृष्ण तो कभी 

राधा है इसका दूसरा नाम.

कभी ममता का आंचल है

तो कभी  डांट फटकार

है वात्सल्य रस.

कभी यशोदा, तो कभी 

देवकी है इसकी

पहचान.

कभी आस्था है, तो कभी 
प्रार्थना है.

कभी राम भक्त हनुमान 
तो कभी मीरा, तुलसी,
सूरदास और कबीर है 
भक्ति रस की मिसाल.

कभी शौर्य तो कभी 
साहस की गाथा है.

कभी रण में वीरगति 
तो कभी विजय की 
गाथा गाता वीर रस 

है.

कभी शिव का तांडव 
तो कभी प्रकृति 
का कोप है,
क्रोध की गाथा 
गाता रौद्र रस 
है.

कभी अनोखी कला,
तो कभी कारनामा है.

आश्चर्य से भर देने 
वाली अद्भुत रस 
की गाथा है.

भय  और घबराहट 
का करता संचार है,

शत्रु को कांपने 
पर कर दे मजबूर 
वो भय रस है.

कभी ध्यान 
तो कभी मौन 
है.

तन मन को कर 
दे शीतल वो शांत 
रस है.

कभी गुदगुदा दे कभी 
व्यंग्य करे.

हास्य का जो भाव जगाए 
वो हास्य रस है.

कम प्रचलित 
और अपवाद स्वरूप होता इस्तेमाल है, वो वीभत्स रस है.

कभी बरसे नयनों से 
अश्रु की धारा,
जब शब्द व्यक्त 
करते शोक.

जब खो जाती सुख 
की आशा, मन में सहानुभूति 
और दया भाव जागता,
वो करूण रस कहलाता है.

कभी धूप तो कभी छांव
है कुछ ऐसे कविता के नौ
रस है.

शिल्पा रोंघे

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होली

 इस होली, हम रंग नहीं लगाएंगे, बल्कि सिर्फ शांति और सौहार्द का संदेश फैलाएंगे।