Saturday, November 24, 2018

सोचा था यूं

सोचा था घर बनायेंगे 

दिल में उनके भी,

उनको समुंदर 

खुद को किनारा

समझ बैठे.

भूल गए थे शायद

रेत के घर लंबे 

नहीं टिका करते.

मुसाफ़िर लहरों 

से दिल लगाया 

नहीं करते.

शिल्पा रोंघे


No comments:

Post a Comment

मेघा

देख रहे हैं राह, बचे-खुचे कुछ जंगल। अब तो निमंत्रण स्वीकार कर। सूख रही हैं नदियाँ और ताल, फिर से बह कर कहीं दूर निकल चल। मेघा, बरस  फिर से, ...