Tuesday, November 20, 2018

कैसी ये चाह

गुजरते है हर 

रोज जिस 

रास्ते से मुसाफ़िर 

जिंदगी के सफ़र के लिए,

हम भी वहां 

से गुजरा करते 

थे, राह में खड़े 

बुत से हमदर्दी कर 

बैठे, चोट खाई जिस

पत्थर से उसी से मरहम 

की उम्मीद लगा बैठे.

दिल पे लगी थी छोटी सी चोट को नासूर 

बना बैठे.

शिल्पा रोंघे

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