गुजरते है हर
रोज जिस
रास्ते से मुसाफ़िर
जिंदगी के सफ़र के लिए,
हम भी वहां
से गुजरा करते
थे, राह में खड़े
बुत से हमदर्दी कर
बैठे, चोट खाई जिस
पत्थर से उसी से मरहम
की उम्मीद लगा बैठे.
दिल पे लगी थी छोटी सी चोट को नासूर
बना बैठे.
शिल्पा रोंघे
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