दहेज
एक पीड़ित पत्नी की रूह
की आवाज़-
सात जनम तक
साथ निभाने
को लिए थे
जिस अग्नी के फ़ेरे
क्या पता था
एक दिन तुम
उसी अग्नी में झोक
दोगे मुझे
ओ साजन मोरे...
बड़े लाड़ से
मां ने ओढ़ाई
थी जो लाल
चुनरियां
क्या पता
था उसी
चुनरियां
से तुम
बनाओगे
मेरे लिए
फांसी
का फंदा
ओ साजन मोरे
क्या पता था
जिस मांग
में भरा
था सिंदूर
उस मांग
को तुम
कर दोगे
लहूलुहान
ओ साजन
मोरे
चंद
रूपयों
के खातिर
चढ़ा
दोगे
मेरी ही
बली
ओ साजन
मोरे
तो कभी
ना बिदा
करते
बाबूल
मोरे
शिल्पा रोंघे
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