Thursday, June 2, 2016

Zindagi ka sabak

Beach Woman, Walking Away, Woman Walking Away, Woman















बचपन की आदत गई नहीं अब तक
 बिन देखे ही चल देते है
गिरते है,ठोकर खाते है
लेकिन गिरकर खुद ही संभलना
सीख लिया हैं
मां के आंचल से
आंसू पोछना
छोड़ दिया है
अब.
रोना भूल गए है
लेकिन सबक कैसे
लेते है ये बखूबी सीख गए है हम

शिल्पा

No comments:

Post a Comment

मेघा

देख रहे हैं राह, बचे-खुचे कुछ जंगल। अब तो निमंत्रण स्वीकार कर। सूख रही हैं नदियाँ और ताल, फिर से बह कर कहीं दूर निकल चल। मेघा, बरस  फिर से, ...