I like to write Hindi poetry in comprehensive language, which try to depict different situation and state of mind of human beings. All Rights reserved ©Shilpa Ronghe
Wednesday, June 1, 2016
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मेघा
देख रहे हैं राह, बचे-खुचे कुछ जंगल। अब तो निमंत्रण स्वीकार कर। सूख रही हैं नदियाँ और ताल, फिर से बह कर कहीं दूर निकल चल। मेघा, बरस फिर से, ...
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पांच पावन दिन जब मिलते तो बनता दीपों का हार. रोशनी की सजती हर घर बारात. फूलों के तोरण से बाग सा सुंदर लगता हर घर द्वार. सात ...
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तेरे कदमों की आहट पर पायल छनके, चुड़ियां खनके, भंवरों का गुंजन हो, पंछियों के कलरव और पानी की कल कल से कुछ ऐसा गीत संगीत बन...
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क्यों गम मनाना गिरते पत्तों का. ये तो आगाज़ है नए पत्तों के आने का. शिल्पा रोंघे
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