Wednesday, June 1, 2016

गरमी की तपन













गरमी की है तपन
बीत गया सावन
सूख गए नदियां
और झरने जो पानी 
से थे लबालब
पीले से होकर झड़ते
है पत्ते जो थे हरे भरे
आया पतझड़
चलते है लू के थपेड़े
बहती है आग सी हवा
होते ही सवेरे
सुनसान है रास्ते
नहीं दिखते हैं
अब गलियों में बच्चें
नाचते गाते
राहत देती है
रातें
जब चलती है ठंडी सी
हवा
शिल्पा रोंघे

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