गरमी की है तपन
बीत गया सावन
बीत गया सावन
सूख गए नदियां
और झरने जो पानी
से थे लबालब
और झरने जो पानी
से थे लबालब
पीले से होकर झड़ते
है पत्ते जो थे हरे भरे
आया पतझड़
है पत्ते जो थे हरे भरे
आया पतझड़
चलते है लू के थपेड़े
बहती है आग सी हवा
होते ही सवेरे
बहती है आग सी हवा
होते ही सवेरे
सुनसान है रास्ते
नहीं दिखते हैं
अब गलियों में बच्चें
नाचते गाते
नहीं दिखते हैं
अब गलियों में बच्चें
नाचते गाते
राहत देती है
रातें
जब चलती है ठंडी सी
हवा
शिल्पा रोंघे
रातें
जब चलती है ठंडी सी
हवा
शिल्पा रोंघे
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