I like to write Hindi poetry in comprehensive language, which try to depict different situation and state of mind of human beings. All Rights reserved ©Shilpa Ronghe
Wednesday, June 1, 2016
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मेघा
देख रहे हैं राह, बचे-खुचे कुछ जंगल। अब तो निमंत्रण स्वीकार कर। सूख रही हैं नदियाँ और ताल, फिर से बह कर कहीं दूर निकल चल। मेघा, बरस फिर से, ...
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मैं जानती हूं कि आए थे तुम मेरे शहर... जिसे मुझसे दूर ले गई थी रोजी रोटी की तलाश.... वो मेरी सौत सी गुज़र बसर उसी श...
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करते है याद जब बचपन के वो दिन तो सोचते है जाने कैसे दिखते होंगे तुम ....... रोज स्कूल से आते वक्त मेरे घर के सामने से गुजरते थे तु...
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मत करना कभी किसी गैर पर भरोसा आंखे बंद करके नुरानी चेहरा भी मुरझा, जाएगा. कभी खुद पर जी खोलकर करके तो देख भरोसा मुरझाया हुआ चेहरा भी...
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