Saturday, December 16, 2017

ये रिवाज़ ये प्रथा

येे रिवाज़,
ये प्रथा,
ये भाषा,
ये संस्कार,
उस नदी के समान है
जो मिलते है जाकर सागर में.

नदियों का बहना भी जरूरी है हर
शहर की प्यास बुझाने
और फिर समुंदर में मिलना भी जरूरी है.

हर रिवाज और प्रथा के,
पीछे सिर्फ आस्था और विश्वास जु़ड़ा है.

जो कि जोड़ता है समाज को एक रंग बिरंगीं
मोतीयों से बनीं माला की तरह.

शिल्पा रोंघे

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होली

 इस होली, हम रंग नहीं लगाएंगे, बल्कि सिर्फ शांति और सौहार्द का संदेश फैलाएंगे।