विकास के खातिर
अपने आस पास की हरियाली को कांटते और छांटते है.
फिर उसी हरियाली की गोद में समा जाने के
लिए लंबी दूरी तय करते है, मोटा धन खर्च
करते है.
हर रोज धूल और धुएं के साए में जीते है.
फिर चंद छुट्टियों के जरिए तन मन को स्वस्थ करना चाहते है लोग.
लगता है अब इस आपाधापी से जल्द ही सबका मन
उब जाएगा.
करते थे जो गांव से शहर की तरफ पलायन विकास
की तलाश में.
अब शायद वो शहर से गांव का रूख़ भी करने की सोचेंगे सुकून की तलाश में.
शिल्पा रोंघे
अपने आस पास की हरियाली को कांटते और छांटते है.
फिर उसी हरियाली की गोद में समा जाने के
लिए लंबी दूरी तय करते है, मोटा धन खर्च
करते है.
हर रोज धूल और धुएं के साए में जीते है.
फिर चंद छुट्टियों के जरिए तन मन को स्वस्थ करना चाहते है लोग.
लगता है अब इस आपाधापी से जल्द ही सबका मन
उब जाएगा.
करते थे जो गांव से शहर की तरफ पलायन विकास
की तलाश में.
अब शायद वो शहर से गांव का रूख़ भी करने की सोचेंगे सुकून की तलाश में.
शिल्पा रोंघे
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