लाखों भी मिल जाए तो वो खुशी नहीं होगी.
जो बचपन में चंद सिक्के मिलनें पर हुआ
करती थी.
जो बचपन में चंद सिक्के मिलनें पर हुआ
करती थी.
कभी टॉफी के लिए तो कभी गुब्बारों के
लिए.
लिए.
जब जुगनू की तरह चमकती थी
आंखे.
जब फूलों की तरह
खिलती थी होंठो पर हंसी.
आंखे.
जब फूलों की तरह
खिलती थी होंठो पर हंसी.
शिल्पा रोंघे
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