सिर्फ लौ के सहारे जलती है शम्मा
उजाला देती है शम्मा.
पंख वाला है परवाना
उड़ सकता है वो आजादी से ना जाने कहां कहां.
हां मडराता है वो जलती शम्मा के ईर्द गिर्द
लेकिन शम्मा के नसीब में उड़ना नहीं सिर्फ जलना
है लिखा.
पंखों के सहारे खिलती है कली बाग में.
फूल बनकर बिखेरती है खूशबू.
पंख वाला है भंवरा.
उड़ सकता है आजादी से वो ना जाने कहां कहां.
हां मंडराता है वो हर खिलती कली के ईर्द गिर्द
लेकिन कली केे नसीब में उड़ना नहीं सिर्फ खिलना है लिखा.
फिर भी ना जाने क्यों लिखनें वालों ने बस कभी
भंवरे तो कभी परवाने की तारीफ़ में ही सब कुछ लिखा.
शिल्पा रोंघे
उजाला देती है शम्मा.
पंख वाला है परवाना
उड़ सकता है वो आजादी से ना जाने कहां कहां.
हां मडराता है वो जलती शम्मा के ईर्द गिर्द
लेकिन शम्मा के नसीब में उड़ना नहीं सिर्फ जलना
है लिखा.
पंखों के सहारे खिलती है कली बाग में.
फूल बनकर बिखेरती है खूशबू.
पंख वाला है भंवरा.
उड़ सकता है आजादी से वो ना जाने कहां कहां.
हां मंडराता है वो हर खिलती कली के ईर्द गिर्द
लेकिन कली केे नसीब में उड़ना नहीं सिर्फ खिलना है लिखा.
फिर भी ना जाने क्यों लिखनें वालों ने बस कभी
भंवरे तो कभी परवाने की तारीफ़ में ही सब कुछ लिखा.
शिल्पा रोंघे
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