चलों कुछ बीज बोकर आते है बंजर ज़मीन में.
चलों कुछ कलम लगा के आते है सूखी हुई टहनी पर.
चलों कुछ सींच के आते है जमीं में गहरी धंसी हुई जड़ों को.
कभी तो लगेंगे फूल वहां पर पारिजात
के.
जो गिरेंगे पेड़ की छाव तलें.
एक दिन
हम भी उन्हें चुन लेंगें
कभी माला गूंथ लेंगे तो कभी गज़रा बना के सजा लेंगे
बालों में अपने.
चलों निकल पड़ते फिर उसी वीरान से बगीचें की
तरफ़.
जिसके पास जाने से कतराते है अब लोग.
हो सकता है कोशिशों से हमारी फिर वहां बहार आ
जाए.
शिल्पा रोंघे
चलों कुछ कलम लगा के आते है सूखी हुई टहनी पर.
चलों कुछ सींच के आते है जमीं में गहरी धंसी हुई जड़ों को.
कभी तो लगेंगे फूल वहां पर पारिजात
के.
जो गिरेंगे पेड़ की छाव तलें.
एक दिन
हम भी उन्हें चुन लेंगें
कभी माला गूंथ लेंगे तो कभी गज़रा बना के सजा लेंगे
बालों में अपने.
चलों निकल पड़ते फिर उसी वीरान से बगीचें की
तरफ़.
जिसके पास जाने से कतराते है अब लोग.
हो सकता है कोशिशों से हमारी फिर वहां बहार आ
जाए.
शिल्पा रोंघे
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