Thursday, December 14, 2017

चकोर की ज़ुबां

एक चकोर की जुबां करवाचौथ पर
यूं तो देखता हूं रोज ही में उस चांद को
उसकी लंबी उम्र की दुआ मांगता हूं अक्सर
ही,
वैसे याद करने का कोई दिन तय किया
नहीं.
यूं तो हर रात ही उसकी रोशनी मेरे
चेहरे पर है पड़ती.
यूं तो अलविदा कह जाता है वो शब ढलते ही.
फिर भी ना जाने क्यूं महसूस होती है दिन के उजाले
में भी उसकी परछाई.
क्या वो भी मुझे देख पाता होगा अरबों और करोड़ों की दुनिया में भी.
शिल्पा रोंघे

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