Saturday, December 9, 2017

प्यार नहीं इश्तेहार

ये प्यार कोई इश्तेहार नहीं है
जो छपे हर अख़बार में.
हां सच है ये भी
अमर प्रेम कहानियां
मिलती है अक्सर
लोक कथाओं में,
तो कभी उपन्यासों में,
तो कभी दीवार पर बनीं इबारतों में
जिस पर बदलते वक्त का असर
भी बेअसर होता है.

शिल्पा रोंघे

No comments:

Post a Comment

मेघा

देख रहे हैं राह, बचे-खुचे कुछ जंगल। अब तो निमंत्रण स्वीकार कर। सूख रही हैं नदियाँ और ताल, फिर से बह कर कहीं दूर निकल चल। मेघा, बरस  फिर से, ...