निशब्द ही होता है प्रेम तो.
शब्दों की जरूरत नहीं होती
उसे बयां करने के लिए.
चाहे तो उस ख़ास की आंखों
में जाकर पढ़ लो.
झुके तो समझों प्रेम है.
गर ना झुके तो पूरी किताब पढ़ना
ही व्यर्थ है.
इश्क ए इज़हार मिलती नहीं
एक दूसरे को देखकर झुकती
आंखों से होता हैं.
शिल्पा रोंघे
शब्दों की जरूरत नहीं होती
उसे बयां करने के लिए.
चाहे तो उस ख़ास की आंखों
में जाकर पढ़ लो.
झुके तो समझों प्रेम है.
गर ना झुके तो पूरी किताब पढ़ना
ही व्यर्थ है.
इश्क ए इज़हार मिलती नहीं
एक दूसरे को देखकर झुकती
आंखों से होता हैं.
शिल्पा रोंघे
No comments:
Post a Comment