Tuesday, December 26, 2017

निशब्द प्रेम

निशब्द ही होता है प्रेम तो.
शब्दों की जरूरत नहीं होती
उसे बयां करने के लिए.
चाहे तो उस  ख़ास की आंखों
में जाकर पढ़ लो.
झुके तो समझों प्रेम है.
गर ना झुके तो पूरी किताब पढ़ना
ही व्यर्थ है.
इश्क ए इज़हार मिलती नहीं
एक दूसरे को देखकर झुकती
आंखों से होता हैं.

शिल्पा रोंघे

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